Tuesday, September 29, 2020

शायद वो खुद भी नहीं जानता

उसकी याद आनेसे हर बार 
मेरी नयी शुरुवात हो जाती है 
कितनी आसानी से ताकत दे जाता है वो 
ये शायद वो खुद भी नहीं जानता 

एक मुस्कुराहट आती है 
धीमी धीमी सी 
जिसकी मिठास का राज 
शायद वो भी नहीं जानता 

मेरी ज़िन्दगी उसी पल 
संपूर्ण हो जाती है 
किसी तलाश की जरूरत नहीं रहती 
इस ठहराव को शायद वो नहीं जानता 

मेरी शायरी अपनेआप 
खूबसूरत हो जाती है 
मेरी कलम को मेहनत नहीं करनी पडती 
उस गेहरे एहसास को वो नहीं जानता 

जानने की कोशिश भी बेकार होंगी 
उसकी गलती भी नहीं 
कितने अधूरे और निकम्मे होते है शब्द  
ये मेरे अंदर का शायर अब है  जानता  

बड़ी मेहेर है रबकी 
कोई सफर नहीं 
किसी मंजिल की तलाश नहीं 
कोई इंतजार नहीं 
सुकून ही सुकून बस... 

उसमे डूब जाने के लिए 
मुझे उसी की जरूरत नहीं 
कितनी खूबसूरत बना दी उसने मेरी ज़िन्दगी 
वो नादान खुद भी नहीं जानता

समंदर की गहराई से होकर 
आसमान की ऊंचाई 
मुझे यूँही पलभर मे हासिल है  
मेरी उड़ान का राज 
शायद वो नहीं जानता 

निहाल है अपने आपमें 
ज़िन्दगी उस पर 
हार कर पूरी दुनिया जीत जाना 
उसी से सीखा मैंने 
कितनी काबिल है उसकी हर अदा
शायद वो खुद भी नहीं जानता 

मुक्ता

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