उसकी याद आनेसे हर बार
मेरी नयी शुरुवात हो जाती है
कितनी आसानी से ताकत दे जाता है वो
ये शायद वो खुद भी नहीं जानता
मेरी नयी शुरुवात हो जाती है
कितनी आसानी से ताकत दे जाता है वो
ये शायद वो खुद भी नहीं जानता
एक मुस्कुराहट आती है
धीमी धीमी सी
जिसकी मिठास का राज
शायद वो भी नहीं जानता
मेरी ज़िन्दगी उसी पल
संपूर्ण हो जाती है
किसी तलाश की जरूरत नहीं रहती
इस ठहराव को शायद वो नहीं जानता
मेरी शायरी अपनेआप
खूबसूरत हो जाती है
मेरी कलम को मेहनत नहीं करनी पडती
उस गेहरे एहसास को वो नहीं जानता
जानने की कोशिश भी बेकार होंगी
उसकी गलती भी नहीं
कितने अधूरे और निकम्मे होते है शब्द
ये मेरे अंदर का शायर अब है जानता
उसकी गलती भी नहीं
कितने अधूरे और निकम्मे होते है शब्द
ये मेरे अंदर का शायर अब है जानता
बड़ी मेहेर है रबकी
कोई सफर नहीं
किसी मंजिल की तलाश नहीं
कोई इंतजार नहीं
सुकून ही सुकून बस...
उसमे डूब जाने के लिए
मुझे उसी की जरूरत नहीं
कितनी खूबसूरत बना दी उसने मेरी ज़िन्दगी
वो नादान खुद भी नहीं जानता
वो नादान खुद भी नहीं जानता
समंदर की गहराई से होकर
आसमान की ऊंचाई
मुझे यूँही पलभर मे हासिल है
मेरी उड़ान का राज
शायद वो नहीं जानता
निहाल है अपने आपमें
ज़िन्दगी उस पर
हार कर पूरी दुनिया जीत जाना
उसी से सीखा मैंने
कितनी काबिल है उसकी हर अदा
शायद वो खुद भी नहीं जानता
मुक्ता
Nice poem . Keep wroting
ReplyDeleteThank you so much
DeleteApratim kavita mukta tai👍👌
ReplyDelete